...

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प्रेम सरोवर
मैं हूं प्रिय तुम्हारा प्रेम पथिक,
बंधन है हमारा चट्टान अधिक।

जैसे हो राधाकृष्ण अद्भुत अ़फ़स़ना,
वो घिरे रहे प्रेमरूपी बादल से परवाना।

अराधना करू अनंत तेरा पथिक,
मिल जाए अमृत मई प्रेम अधिक।

छोड़ जाए डगर पे नाचीज़ नहीं हम,
उलाहना हो तो प्रेम पथिक नहीं हम।

सच्चा हूं प्रेम के बादल सा चितचोर,
जीत जाऊ दुनियां वर्ष जाऊं चारों ओर।

चाहें हूं कितनी भी ऊंची माकाम पे,
पानी की बूंद हूं पुनः गिरूंगा धरती पे।।
© दिल से दीप