...

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!..खामोश!,'आज़ादी से बोल..!
जल रहे हैं मेरे अपने, जालिम के बारूद पर
मुल्क बहुत है मेरे लेकिन,सब यहां बुजदिल निकले

साथ नहीं है देखा इनको, पास ना आए ये मुनकिर
एक ही मजहब था हम सबका, हर कोई कौम बना निकले

सारे...