...

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~रिश्ते~
रिश्ते.....

रिश्ते पैसेंजर ट्रेन के एक नए सफ़र की तरह होते है,

शुरू में ढेर सारी चहल - पहल
नए सफ़र में चलने का ज़ोश
फ़िर एक दो घंटे में ख़ामोश होने लगते है
ऊँघने लगते हैं ........
बातें अधूरी छोड़ कर,
ख़ुद में मसरूफ़ हो जाते है

वही मुसाफ़िर जो हँसते - खेलते
खवाबों को भर कर
इस सफ़र में बडे शौक से चढ़े थे
वही अब सफ़र से ऊब जाते है

सफ़र और थोड़ा बढ़ता है
तो रिश्ता एक गहरी नींद में सो जाता है
फिर किसी को कोई फर्क नही पड़ता की क्या हो रहा है !!

स्वरचित
अनु माथुर ✍️
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