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विटप, तुमसे तो है
सांसों का चलना , अन्नों से तृप्ति और ये मीठे झल,
रस_ गंध _स्वाद_ मादकता से सृष्टि,और सोन_ से _बादल
रेशम - द्युति व खद्योत का प्रकाश , मौसम का परिवर्तन,
चंदन की छवि ,जड़ी - बूटी का वैभव , साज-शय्या आकर्षण,
विटप ,तुम से तो हैं - ये हरित आनंदमय उत्कर्ष !

ग्रह की रचना , पूजा पात्र, आवरण का रंग व स्मार्त,
कलाकृति की नींव,ऊष्मता - शोषण - तुम ही हो  निहितार्थ,
काटकर कौन करे पाप , संस्कृति के शाकल्य हवन करे ,
रोग - भय, भूकंप ,बाढ़ ,आंधी, वज्र से प्रायश्चित व तन करे,
विटप ,तुमसे तो हैं  ये - सहित, स्वछंद ,लय ,अति हर्ष !

धरा का उर्वर ,कोयल - हूक , कोक़ , स्नेह की उर्जा भी,
कृषकों का धन , नद - जल का शोधन, इंधन ,कल पुर्जा भी,
कोटि-कोटि कीट, वन जीवों  का साकेत ,संस्कार ये सब ही,
धर्म की धारणा, विज्ञानी का संधान, उत्थान तो अब भी,
विटप ,तुम से ही हैं - ये मूल - फल - कंदमय हर वर्ष !
            @कॉपीराइट


© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत'