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🌠तुम संतान हमारी हो !🌠
जन्म दिया था हम सबको,
शीतलता का जिसमें साया है |
     उजड़ी कोख भी रौंदी तूने,
फिर जो चाहा सो पाया है |
      जिससे ऊपर उठने का तू भ्रम देखकर बैठा था,
उसी का बदन सदियों से तेरी भूख मिटाता आया hai|

         जिसकी सहनशक्ति ने बड़ी आपदाएं टाली  हैँ,
जिसकी गर्जन भी तेरी सौ मिसाइलों पे भारी हैँ,

   उसी की छाती पर बैठे तूने न जाने कितनी तलवारें मारी है,
      जिसकी ममता के आगे ही तेरी सारी भूलें जारी हैँ|

ममता की परीक्षा लेने माथे पर जो चढ़ आये हो,
         सारा बदन तो रौंद दिया,
    अरे बालक,  तुम यहाँ !!!!
अब और क्या माँगने आये हो?

         उस चार -दीवारी को बड़ा करोगे,
क्या ऊँचा और बनाओगे???

       लो बेटा, मस्तिष्क भी ले लो,
नहीं तो ईंट कहाँ से लाओगे !!!

              फिर कैसे समाज में अपनी तुम
             नाक बड़ी कर पाओगे,  नहीं कर सके तो फिर कैसे मुँह उनको दिखलाओगे !

          पर तुलना का कांटा भी तुमसे कबतक ही टिक पायेगा,
     काठ बिना है भवन अधूरा,
         फिर लौट यहीं पर आओगे.....

    उस सुकून की काया से  तुम आंधी में क्यों आये हो,
इस बूढ़ी माता के आँचल से अब और क्या ले जाने आये हो???

          भर गए थे घाव तुम्हारे,
    क्या नया घाव लगवाया है?

     कुछ चिंतित से हो लग रहे,
क्या तूफान नया कोई आया है????

      चार -दीवारी में दुपके,
कुछ डरे -डरे से लग रहे !
अरे अमृत स्वाभिमान का पीकर,
     आज बात मरने की हो कर रहे !

         कब तोड़ोगे गरीब की कुटिया,
    कब कुर्ता नया सिलवाओगे,
   वो जंगल काट कर पैसे तो बहुत मिले होंगे,
कब बैंक नया खुलवाओगे?????

         इतनी सदियों बाद वो क़यामत कौनसी आयी है,
जो जहाज़ों से सीधे तुझको घुटनों पर ले आयी है !!!

        घबराओ नहीं, 
     तुम मानव हो,
    पक्षी कानों में कहते थे,
कि तुम युगों -युगों से दानव हो...
ये दोष भी तुम शस्त्रों से बड़ी बखूबी मिटाओगे,
तभी तो तुम सच्चे अर्थों में मानव कहलाओगे....

        हो जितनी भी कठिनाई मुझे,
     इतना ही तुमसे कहती हूँ....
    मेरे बालक को कोई कमी ना हो
   इसलिए मैं तेरे दुष्कर्मों को भी सहती हूँ,

     हे मानव ! बस यही कहूँगी,
          जयकार तुम्हारी ही हो!
      शायद तुम फिर भूल गए
मैं  प्रकृति,  संतान तुम हमारी ही हो !!!!!!!!

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द्वारा :-  KO#SH
कृति दिनांक :-मई 10,  2020

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