खाली पड़े जूते: मेरे हमसफ़र
#खालीजूते
ऐ मेरे “खाली” पड़े जूते!
तुम कभी थे मेरे हमसफ़र।
ठिठुरती रात हो या
या हो चिलचिलाती दोपहर,
तुम्हारे साथ हीं तो किया है मैंने
शिफर से शिखर तक का सफ़र।
सुख हो या दुःख,
हो परिवार से हताश,
या हो नौकरी की तलाश।
तुम हीं तो थे,
हमेशा मेरे पास।
तुमने हीं रखा मुझे सुरक्षित,
मेरी हीं खातिर सहा
हज़ारों ठोकरें,
गांव-गांव और शहर-शहर।
सहा दुनिया के
कुचलते क़दमों का कहर।
और मेरी हीं खातिर पीया,
हर प्रतिस्पर्धा का ज़हर।
तुमने “छोटा” बना लिया ख़ुद...
ऐ मेरे “खाली” पड़े जूते!
तुम कभी थे मेरे हमसफ़र।
ठिठुरती रात हो या
या हो चिलचिलाती दोपहर,
तुम्हारे साथ हीं तो किया है मैंने
शिफर से शिखर तक का सफ़र।
सुख हो या दुःख,
हो परिवार से हताश,
या हो नौकरी की तलाश।
तुम हीं तो थे,
हमेशा मेरे पास।
तुमने हीं रखा मुझे सुरक्षित,
मेरी हीं खातिर सहा
हज़ारों ठोकरें,
गांव-गांव और शहर-शहर।
सहा दुनिया के
कुचलते क़दमों का कहर।
और मेरी हीं खातिर पीया,
हर प्रतिस्पर्धा का ज़हर।
तुमने “छोटा” बना लिया ख़ुद...