...

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फिज़ा(air) की धड़कन💓!
ज़िन्दगी बनी मौत की सौदागर,
इसे खौफ़ की अब खबर ही नहीं रही!
दिल का तराना फिज़ा की धड़कन बनके धड़कने लगी,
आगे बढ़ता ही गया मुसाफ़िर बिना सोचे ग़लत या सही!

क्या है,क्या नहीं?
अब इसकी परवाह नहीं!
तड़पने से अच्छा है बे-धड़कन रहूं,
मैं मंज़िल की खोज में बना बेसहारा-राही!

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© Abdul Ahad GujBihari