...

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ख़ुद को देखो
ख़ुद को देखो तुम! क्या से क्या हो गए?
ज़माने की मशरूफियत में बेइंतहां खो गए
कहां जाना था और कहां चले आए हो?
दबाकर ख्वाइशों को चैन से क्यों सो गए?
तुम्हारे तल्ख लहज़े दब गए किस बोझ से?
तुम्हारे पैर क्यों डरते हैं अब कुछ खोज से?
समझता हूं तेरी मजबूरियां फिर भी मग़र!
कि मरना आज का बेहतर है, मरने रोज से
है मुश्किल कुछ नहीं! आसान सब है जान लो
अगर शिद्दत से कुछ भी मन...