जब शून्य बचा हो ....
जब शून्य बचा हो अपने भीतर
तब क्लेश नहीं कोई होता है
ना हंसना जरूरी है मेरा
ना आंसू की कोई रेखा है
जब शून्य बचा हो अपने भीतर
सब कुछ आसां हो जाता है
ना दर्द कोई रहता है दिल में
ना उत्सव की कोई बेला है
जब शून्य बचा हो अपने भीतर
तब बाहर सब सोया रहता है
रिक्तता के इसी एक पल में
फिर अंतर प्रबुद्ध हो जाता है
जब शून्य बचा हो...
तब क्लेश नहीं कोई होता है
ना हंसना जरूरी है मेरा
ना आंसू की कोई रेखा है
जब शून्य बचा हो अपने भीतर
सब कुछ आसां हो जाता है
ना दर्द कोई रहता है दिल में
ना उत्सव की कोई बेला है
जब शून्य बचा हो अपने भीतर
तब बाहर सब सोया रहता है
रिक्तता के इसी एक पल में
फिर अंतर प्रबुद्ध हो जाता है
जब शून्य बचा हो...