...

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जब शून्य बचा हो ....
जब शून्य बचा हो अपने भीतर
तब क्लेश नहीं कोई होता है
ना हंसना जरूरी है मेरा
ना आंसू की कोई रेखा है

जब शून्य बचा हो अपने भीतर
सब कुछ आसां हो जाता है
ना दर्द कोई रहता है दिल में
ना उत्सव की कोई बेला है

जब शून्य बचा हो अपने भीतर
तब बाहर सब सोया रहता है
रिक्तता के इसी एक पल में
फिर अंतर प्रबुद्ध हो जाता है

जब शून्य बचा हो अपने भीतर
फिर निरपेक्षता शेष रह जाता है
ना स्वप्न कोई पलकों पर होता है
हर ओर यथार्थ रह जाता है

जब शून्य बचा हो अपने भीतर
हर द्वंद खत्म हो जाता है
सत्य, मिथ्या,उचित, अनुचित का
संशय शेष नहीं रह जाता है

जब शून्य बचा हो अपने भीतर
मन पाषाण हो जाता है
कलह,क्लेश , उन्माद, द्वेष
प्रेम, आसक्ति,भक्ति, स्नेह,
तब सब तटस्थ हो जाता है

जब शून्य बचा हो भीतर
हर अंधकार मेरा हर लेता है
शून्यता के इस आंगन में
अंतर मेरा प्रदीप्त हो जाता है
जब शून्य बचा हो भीतर....
रंजना श्रीवास्तव ✍️✍️
© Ranjana Shrivastava