...

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सागर किनारे
अथांग सागर के किनारे
कुछ पल आज गुजारे

प्रशस्त सा लगा
मानों सब कुछ
हो थमा
न कोई बंधन
न कोई सीमा

बस एक ही 'अस्तित्व'
हो
और सब उसमें
ही अंतर्निहित हो

मैं वहां से कभी
लौटा ही नहीं
अब भी वही हूं
जैसे
या मानो सागर भी
साथ चलता हो
जैसे

स्वरचित © ओम'साई' ०७.०८.२०२१

© aum 'sai'