...

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निश्वार्थ
निश्वार्थ प्रेम है अनंत सा,
मृग हृदय मे जो कस्तूरी सा,
व्यभिचर करता है मृदंग सा,
खुशियों मे जो हो निश्चय सा,
है प्राण प्रतिष्ठा की भाती,...