...

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उम्मीद
दिल से अब उसकी आस निकल गई
हैरत नहीं अब उसकी याद निकल गई।

अरसा हुआ पैरों को ज़मीं पे चले हुऐ
सारी उम्र यू ही उम्र पार निकल गई।

एक शाख पर था बसेरा दो परिंदों का
शज़र से ख़ुद अलग शाख निकल गई।

तर्क ए ताल्लुक तक नहीं रखा हमसे
ताल्लुक की हसरत में रात निकल गई।