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दीवारें....
हाथ धरे छाती पर
किस दुविधा में पड़ी हैं
देखो तो हर तरफ़ कैसे
ऊँची दीवारें खड़ी हैं
चुपचाप खड़े हैं हम तुम
हाथों में हथकड़ी हैं
धक्का मुक्की हर तरफ
और नज़रें नीचे गड़ी हैं
अवरोध निवारोगे कब तुम
ताक पर इंसानियत धरी है
अगवानी में अभिमानी की
गर्दन बीचों बीच खड़ी है
रोक सकेगा तुमको कौन
ढहाने की बाँधो जो कड़ी है
क्यों झुकते हो आगे इनके
जो ठानो एक बार..
दीवारें हौसलों से नहीं बड़ी हैं..!!
.... bindu
© bindu
किस दुविधा में पड़ी हैं
देखो तो हर तरफ़ कैसे
ऊँची दीवारें खड़ी हैं
चुपचाप खड़े हैं हम तुम
हाथों में हथकड़ी हैं
धक्का मुक्की हर तरफ
और नज़रें नीचे गड़ी हैं
अवरोध निवारोगे कब तुम
ताक पर इंसानियत धरी है
अगवानी में अभिमानी की
गर्दन बीचों बीच खड़ी है
रोक सकेगा तुमको कौन
ढहाने की बाँधो जो कड़ी है
क्यों झुकते हो आगे इनके
जो ठानो एक बार..
दीवारें हौसलों से नहीं बड़ी हैं..!!
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