प्रतिबिंब
आया बुलावा मौत का मैं था खड़ा-खड़ा वहीं पे
गिरा शरीर जब धरा पे,मैं था खड़ा-खड़ा वहीं पे
चहुँ ओर मातम ही मातम शोकाकुल हुए जब परिजन
मैं भ्रमित मन से निहारता रहा खड़ा खड़ा वहीं पे
है मोह माया जग में कितना जब पड़ा इन्सान धरा पे
जीवित पे कद्र नहीं मरने पे उमड़ा सैलाब आँसुओ का
द्रवित मन व करूणा से भरपूर मानव दिखता कहाँ है
सब के अपने अपने फंसाने व अपने अपने क़िस्से हैं
मैं सोच में पड़, सोचता रहा खड़ा खड़ा वहीं पे
गज़ब की है दुनियाँ गज़ब के हैं इनके कारनामे
© लम्हों का शायर (kashish...Sk)
गिरा शरीर जब धरा पे,मैं था खड़ा-खड़ा वहीं पे
चहुँ ओर मातम ही मातम शोकाकुल हुए जब परिजन
मैं भ्रमित मन से निहारता रहा खड़ा खड़ा वहीं पे
है मोह माया जग में कितना जब पड़ा इन्सान धरा पे
जीवित पे कद्र नहीं मरने पे उमड़ा सैलाब आँसुओ का
द्रवित मन व करूणा से भरपूर मानव दिखता कहाँ है
सब के अपने अपने फंसाने व अपने अपने क़िस्से हैं
मैं सोच में पड़, सोचता रहा खड़ा खड़ा वहीं पे
गज़ब की है दुनियाँ गज़ब के हैं इनके कारनामे
© लम्हों का शायर (kashish...Sk)