...

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आदरणीय सुधा मां
सुधा मां के जितना कोई सरल नही
उनके जैसा कोई निर्मल नही
वक्त अनुसार अग्नि ज्वाला बन जाती है
फिर ममत्व से सबको अपनाती है
इंसान हो या जानवर
सबके पेट की आग बुझाती है
आदि से अंत तक
सबको संभालना चाहती है
खुशियों की दीपक हर घर में जलाती है
उचित कार्य में शाबाशी देती
अनुउचित कार्य में डांट लगाती है
ममतामय अंचल से सबको छाया दे
सबके जीवन को जगमग कर जाती है।
आज में लिखकर उनके विषय में
उनको धन्यवाद प्रेषित करती हूं।
सौभाग्य है मेरा की में उनके लिए
अपनी कलम से कुछ लिख सकती हूं।
© shivani jain