चाहत
क्यों तुझे मैं चाहूँ,
क्यों तुझे पाने की है आरज़ू।
खता क्या बता मेरी है,
जो सजा ऐसी मुझे मिली है।
के अब इबादत में तुझको चाहने लगे हैं,
फिर भी तेरी झलक ना मिली।
खामोश क्यों हो, ज़माने सा,
क्या पल थे वो ही आख़िरी।
तेरी आँखों में मैं अब डूबना चाहूँ,
फिर खताएँ मुझे क्यों मिलीं,
क्यों तुझे पाने की है आरज़ू।
ग़म तो सारे ज़माने का है,
खुशियाँ तुझे देख कर ही मिलीं।
...
क्यों तुझे पाने की है आरज़ू।
खता क्या बता मेरी है,
जो सजा ऐसी मुझे मिली है।
के अब इबादत में तुझको चाहने लगे हैं,
फिर भी तेरी झलक ना मिली।
खामोश क्यों हो, ज़माने सा,
क्या पल थे वो ही आख़िरी।
तेरी आँखों में मैं अब डूबना चाहूँ,
फिर खताएँ मुझे क्यों मिलीं,
क्यों तुझे पाने की है आरज़ू।
ग़म तो सारे ज़माने का है,
खुशियाँ तुझे देख कर ही मिलीं।
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