Kaisa dost hai Tu...
मै रोता हूँ तू मुस्कुराता है है ,
मेरे जख्मों में तू मिर्ची लगाता है ,
मेरा हसना न तुझको रास आता है।
कैसा दोस्त है तू ?
जब सही राह मै चलता हूँ ,
तू राहों से भटकाता है ,
जो न सीखना हो ,वो बातें भी सिखलाता है।
कैसा दोस्त है तू ?
मै करता हूँ भरोसा ,तुझपे अपनी आंखे मूदकर ,
हर बार तू भरोसा मेरा तोड़ ही जाता है ,
नहीं करना भरोसा किसी पर आंखे मूँदकर ,
ये बातें सिखलाता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मेरी खातिर तू दौलत है ,
तेरी खातिर मै सौदा हूँ ,
बस कुछ पैसों की खातिर दगा हर बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मेरे आगे तू कुछ और है ,
मेरे पीछे तू कुछ और है ,
मुझे मेरी अंजान असलियत से तू ,
वाकिफ हर एक बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मुझे मेरे ही लोगों से ,जुदा हर बार करता है ,
मगर कहता ही रहता है ,तू मुझसे प्यार करता है ,
फरक कर पाऊं ना मै अपने पराये में ,
यही कोशिश तू हर एक ,बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मुझे मंजिल तक तू पहुचायें ,
मेरी खातिर नई राहें बनाये ,,
न ऐसा तू कभी एक बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मै आगे बढ़ता हूँ ,तू पीछे खींचता है ,
मै साफ देख न पाऊँ ,इसलिए आंखे मीचता है ,
ऐसी खता ही ,तू हर एक बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
तुझे लगता है ,मै तेरी असलियत न समझ पाउँगा ,
तेरी मीठी सी बातों में ,मै यूँ ही बहल जाऊंगा ,
मगर ये कोशिशें तू ,बस बेकार करता है।,
कैसा दोस्त है तू ?
तेरी खातिर न मैंने फरक देखा ,रात और दिन का ,
तेरी खातिर रहा मै ,सब आँखों में फसा तिनका ,
मगर मेरी अहमियत को तू ,नजर अंदाज करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मैंने कुर्बान कर दी ,अपनी मोहब्बत ,
तेरी एक ख्वाहिश के खातिर ही ,
मगर तू है की खंजर से ,पीठ पर वॉर करता है ,
मुझे मेरी ही नजरों में ,बहुत ही शर्मशार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
क्या मर गया ?
तेरी आँखों से शराफत का पानी सब ,
मेरी दोस्ती की कहानी ,तुझे समझ में आएगी कब ,
न ही तू मेरे जैसा ,किसी पर ऐतबार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
© Navneet Kumar mishra
मेरे जख्मों में तू मिर्ची लगाता है ,
मेरा हसना न तुझको रास आता है।
कैसा दोस्त है तू ?
जब सही राह मै चलता हूँ ,
तू राहों से भटकाता है ,
जो न सीखना हो ,वो बातें भी सिखलाता है।
कैसा दोस्त है तू ?
मै करता हूँ भरोसा ,तुझपे अपनी आंखे मूदकर ,
हर बार तू भरोसा मेरा तोड़ ही जाता है ,
नहीं करना भरोसा किसी पर आंखे मूँदकर ,
ये बातें सिखलाता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मेरी खातिर तू दौलत है ,
तेरी खातिर मै सौदा हूँ ,
बस कुछ पैसों की खातिर दगा हर बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मेरे आगे तू कुछ और है ,
मेरे पीछे तू कुछ और है ,
मुझे मेरी अंजान असलियत से तू ,
वाकिफ हर एक बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मुझे मेरे ही लोगों से ,जुदा हर बार करता है ,
मगर कहता ही रहता है ,तू मुझसे प्यार करता है ,
फरक कर पाऊं ना मै अपने पराये में ,
यही कोशिश तू हर एक ,बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मुझे मंजिल तक तू पहुचायें ,
मेरी खातिर नई राहें बनाये ,,
न ऐसा तू कभी एक बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मै आगे बढ़ता हूँ ,तू पीछे खींचता है ,
मै साफ देख न पाऊँ ,इसलिए आंखे मीचता है ,
ऐसी खता ही ,तू हर एक बार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
तुझे लगता है ,मै तेरी असलियत न समझ पाउँगा ,
तेरी मीठी सी बातों में ,मै यूँ ही बहल जाऊंगा ,
मगर ये कोशिशें तू ,बस बेकार करता है।,
कैसा दोस्त है तू ?
तेरी खातिर न मैंने फरक देखा ,रात और दिन का ,
तेरी खातिर रहा मै ,सब आँखों में फसा तिनका ,
मगर मेरी अहमियत को तू ,नजर अंदाज करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
मैंने कुर्बान कर दी ,अपनी मोहब्बत ,
तेरी एक ख्वाहिश के खातिर ही ,
मगर तू है की खंजर से ,पीठ पर वॉर करता है ,
मुझे मेरी ही नजरों में ,बहुत ही शर्मशार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
क्या मर गया ?
तेरी आँखों से शराफत का पानी सब ,
मेरी दोस्ती की कहानी ,तुझे समझ में आएगी कब ,
न ही तू मेरे जैसा ,किसी पर ऐतबार करता है ,
कैसा दोस्त है तू ?
© Navneet Kumar mishra