...

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तलाश
खुद को ना ढूंढ सके ज़िंदगी भर तलाश किस की थी
पूरी ज़िंदगी थे जिए फिर कंधों पर लाश किस की थी।

सफ़र कुछ ही दिनों का है परेशान न हो ज़िंदगी
जाना ख़ाली हाथ है तो फिर आस किस की थी।

सहरा में भटके थे कभी एक बूंद पानी के लिए
सागर है बाहों में तो फिर प्यास किस की थी।

सहर ओ शाम रहा दिल में तू इंकलाब गोया
दिल ए बेताब तो फिर मौज ए बहार किस की थी ।