...

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नन्ही घास मेरे इश्क में
उदित भोर मन मेरा मुदित
खोले पट लगी मुझे प्रीत,
नन्ही घास देख मुझे
मंद-मंद मुस्कुरा रही ।

नित तेज लगे तप्त
संध्या तक हो मृत ,
सुबह उठूं आ गोद में
अपना सारा दर्द सुना रही।

कहे इश्क करती हूं ,
कवि तुझमें रमती हूं,
देख मुझे ध्यान से
पगली मुझसे शरमा रही।

प्रेमिका वह कहती है ,
जमीन पे वह जन्मी है,
मुझपे लिख कविता मैं हूं सीता
मुझसे नयन लड़ा रही।


© जितेन्द्र कुमार 'सरकार'