...

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आज की सियासत के नाम ~
सियासत में हैं कैसी लाचारियां।
अदाकारियां ही अदाकारियां।

हैं माहिर बदलने में पाला सभी,
हैं कुर्सी की भूखी वफ़ादारियां।

इन्हें चाहिए मुर्ग बिरयानी अब,
इन्हें अब कहाँ भाती तरकारियां।

उन्हीं की क़दम बोसी करने लगे,
गिनाते थे कल जिनकी मक्कारियां।

उगाते ये नफ़रत की विषबेल हैं
हैं उजड़ी मुहब्बत की फुलवारियां।

जला ही न दें अपना गुलशन कहीं,
सुलगती हैं कितनी ही चिंगारियां।

दिये मीठे फ़ल,छाँव जिसने कभी,
उसी पेड़ पर चल रहीं आरियां।

नहीं कोई इनसे अछूती बची,
हैं दुनिया की जितनी भी बदकारियाँ।
© इन्दु