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अब थमना नहीं है
अब थमना नहीं है,
अब रुकना नहीं है,
कुछ दूर तक है चलना
थोड़ा उछलना सही है।
धरा से थोड़ी दूर
आसमान को है छूना।
जीत के उस तिरंगे को
हमें लहराना यही है,
जहां जीत भी सही है,
थोड़ी हार भी सही है,
लेकिन ,
उस हार से कुछ सीखना ही सही है।
अब तपना सही है,
पिघलना सही है,
लेकिन हीरा है हमें बनना,
तो यह सहना सही है।
रास्तों में रुकावट है,
यही तो इन राहों को बनाता है ।
इस जीवन का मूल अर्थ,
यही तो बताता है।
लक्ष्य की तमन्ना,
बस इन राहों पर चलाती है ।
जीत की चाहत ही,
तो जीत तो दिलाती है।
अब रुकना नहीं है ,
तुझे झुकना नहीं है,
बस कुछ दूर तक है और चलना,
गगन को छूना यही है,
क्योंकि ....
क्योंकि हमें उगना यही हैं।
© श्रीहरि
अब रुकना नहीं है,
कुछ दूर तक है चलना
थोड़ा उछलना सही है।
धरा से थोड़ी दूर
आसमान को है छूना।
जीत के उस तिरंगे को
हमें लहराना यही है,
जहां जीत भी सही है,
थोड़ी हार भी सही है,
लेकिन ,
उस हार से कुछ सीखना ही सही है।
अब तपना सही है,
पिघलना सही है,
लेकिन हीरा है हमें बनना,
तो यह सहना सही है।
रास्तों में रुकावट है,
यही तो इन राहों को बनाता है ।
इस जीवन का मूल अर्थ,
यही तो बताता है।
लक्ष्य की तमन्ना,
बस इन राहों पर चलाती है ।
जीत की चाहत ही,
तो जीत तो दिलाती है।
अब रुकना नहीं है ,
तुझे झुकना नहीं है,
बस कुछ दूर तक है और चलना,
गगन को छूना यही है,
क्योंकि ....
क्योंकि हमें उगना यही हैं।
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