...

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अधूरी दास्तान
खोकर खुद को, पानी थी पहचान
पर रह गई इश्क़ की अधूरी दास्तान

मैंने चाहा था उसे दिलो जान से
रखा था दिल मे उसे बड़े शान से
मगर उसे इश्क़ मेरा मंज़ूर न था
इसमे उसका कोई कसूर न था

मैंने ही दिल अपना उसपर वारा था
समझा उसको जीवन का सहारा था
उसकी भी अपनी कोई मजबूरी थी
निजी उसकी ज़िन्दगी भी ज़रूरी थी

ऐसा नही की उसे मुझसे नफरत है
सीधी बात करना उसकी फितरत है
उसको निभानी है कई ज़िम्मेदारियां
छोटी सी जान पर है बहुत परेशानियां

मैं नही चाहता चाहतों का बोझ लादना
उसे भी अपने जीवन को है साधना
कोशिश मेरी फिर भी जारी रहेगी
मालूम नही मुझे कब वो हां कहेगी

खोकर खुद को, पानी थी पहचान
पर रह गई इश्क़ की अधूरी दास्तान

© rbdilkibaat