एक कली खिल रही है..........✍🏻
कुंज-ए-चमन में एक कली खिल रही है
धीरे-धीरे रंग-ए-चमन में घुल-मिल रही है
हल्की-हल्की महक से ये मनमुग्ध कर गई
ये कली अपने नाम इक महफ़िल कर रही है
माटी से लेकर हवा तक ये गुफ्तगू करती गई
वो कली आज फूल बनकर मुश्किल कर रही है
ये भंवरें आहिस्ता-आहिस्ता इश्क़ फ़रमाने लगे
अठखेलेपन में फिर से एक कली खिल रही है
कभी मुस्कुराती तो कभी मुरझी हुई नज़र आती...
धीरे-धीरे रंग-ए-चमन में घुल-मिल रही है
हल्की-हल्की महक से ये मनमुग्ध कर गई
ये कली अपने नाम इक महफ़िल कर रही है
माटी से लेकर हवा तक ये गुफ्तगू करती गई
वो कली आज फूल बनकर मुश्किल कर रही है
ये भंवरें आहिस्ता-आहिस्ता इश्क़ फ़रमाने लगे
अठखेलेपन में फिर से एक कली खिल रही है
कभी मुस्कुराती तो कभी मुरझी हुई नज़र आती...