ज़िंदगी
ऐ ज़िंदगी तू हर बार मुझे बुरा क्यूं बनाती है
दो-चार सबक जो सीख लिए मैंने
तू बार-बार क्यूं सिखाती है
अब अच्छाई का क्या मोल दूं मैं
अपने मन को कैसे बोल दूं मैं
जो चुप कर सह लूं सारा
तो बस फिर अनमोल हूं मैं
ये कैसे-कैसे दिन दिखलाती है
दो चार सबक जो सीख लिए मैंने
तू बार-बार क्यूं सिखाती है
ये जो लोग मेरे पास हैं
जो कहने को बस साथ हैं
जो मांग लूं इनसे थोड़ा अपना
छूट जाते इनके हाथ हैं
तू ऐसे लोगों से क्यूं मिलवाती है
दो-चार सबक जो सीख लिए मैंने
तू बार-बार क्यूं सिखाती है
ऐ ज़िन्दगी तू हर बार मुझे बुरा क्यूं बनाती है
_चित्रलेखा सिंह
दो-चार सबक जो सीख लिए मैंने
तू बार-बार क्यूं सिखाती है
अब अच्छाई का क्या मोल दूं मैं
अपने मन को कैसे बोल दूं मैं
जो चुप कर सह लूं सारा
तो बस फिर अनमोल हूं मैं
ये कैसे-कैसे दिन दिखलाती है
दो चार सबक जो सीख लिए मैंने
तू बार-बार क्यूं सिखाती है
ये जो लोग मेरे पास हैं
जो कहने को बस साथ हैं
जो मांग लूं इनसे थोड़ा अपना
छूट जाते इनके हाथ हैं
तू ऐसे लोगों से क्यूं मिलवाती है
दो-चार सबक जो सीख लिए मैंने
तू बार-बार क्यूं सिखाती है
ऐ ज़िन्दगी तू हर बार मुझे बुरा क्यूं बनाती है
_चित्रलेखा सिंह