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वो किसान था, जाने क्यों हार गया,,
पैदा हुआ था एक छोटे से घर में, जहां अंधेरा सा रहता था,,
माता – पिता की स्थिति को देख, वो उदास सा रहता था,,
सोचा था बड़ा होकर, बनूंगा एक कलेक्टर या अफसर,
पर बाप की मौत से उसे जिंदगी ना पार गया,
वो किसान था, जाने क्यों हार गया।।

बड़ा होकर बना किसान वो, अपने पिता को जो खोया था,,
मां की सेवा करने का प्रण लेकर, खेत में बीज बोया था,,
पर शायद वो इस जहां के खेल से बेरुख सार गया,,
वो किसान था, जाने क्यों हार गया।।

अब आयी थी राजनीति की बारी, राजनेताओं ने उसे नोचा था,,
जी रहा था मेहनत करके, पर ऐसा भी होगा उसने कहां सोचा था,
कई वादे उससे करके , राजनेताओं ने उससे वोट पाया था,,
पर उसे शायद पता नहीं था, कि अब अंधेरा उसपर छाया था,
राजनेताओं से हारकर, वो बहुत चोट खाकर पार गया,,
वो किसान था, जाने क्यों हार गया ।।

अब तो खुदा ने भी उसके साथ राजनीति खेली थी,
कभी सूखा तो कभी भयंकर बारिश उसने झेली थी
अब तो और मुसीबत उसके सर आनी थी,
राजनेताओं ने जो उसके सर डाली एक और परेशानी थी,,

राजनीति की वजह से सड़क पर उसे आना पड़ा,
खेतो को बेचकर खाना उसे खाना पड़ा,
आज भी वो सड़क पर अपनो के साथ राज्य की सरहद पार गया,

वो किसान था, जाने क्यों हार गया ।।