...

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रिक्त पूर्ति
किसलिए नहीं स्वीकार तुम्हे
प्रीत देह संधान
माना आत्मा उर्वरक-भू
पर देह भी है धान

क्यों नहीं अंग स्पर्श पर
सरल तुम्हारा नेह
नित अपरिचित आनंद पर
क्यों तुमको संदेह

क्या नहीं हिलोरे लेता तुममे
भीतर रुका आनंद
क्या ये विकृत नहीं कि
करो तुम मन-द्वारों को बंद

क्यों अनिवार्य, परिणय से पाओ
संसर्गो का मित्र
हृदय- सखा संग साहचर्य
क्यों मैला और अपवित्र

सहज सम्बन्धो संग मन पर
कैसा भ्रमित नियंत्रण
कृत्रिम गठबंधन में केवल है
दत्त-चित्त का यंत्रण

क्यों योजनाबद्ध हुआ है
दैहिक अंगीकार
पूर्ण सरल और सहसा भी होता
सहज देह निस्तार

प्रेम मात्र विदेह-सम्बन्ध
यूँ भ्रमित सभी है लोग
आत्मा के आवास में क्यों
आतिथ्य कहलाता भोग

क्या रोका है तुमने भँवरे को
करे कली - कली को फूल
क्या समझाया कलियो को
कि भँवरा जाए भूल

कभी अकारण नहीं होता है
कुछ पा लेने का द्वन्द
हर रिक्त पूर्ति में प्यास जगाती
प्रकृति है पाबन्द.

तन को रोकोगे,सहस्रो
मन को होंगे रोग
मैले मन से प्रेम तुम्हारा
कैसे होगा योग


© Ninad