...

10 views

गुमनाम ना हो जाना
राजू को गुमान है कि
मालिक उसे मानता है सबसे अच्छा ड्राइवर;
बैजू को गुमान है कि
उसने दिखाया गांव वालों को दो धूर खरीदकर;
तुम्हें भी गुमान है - कभी पुरस्कार मिलता था एक हंसाऊ कवि बनकर;
मुझे भी गुमान है कि
कभी तिरस्कार ना मिला भला क्षुद्र कवि रहकर।

मैं पूछता हूं गुमान किसे नहीं है ?
उस अंधे बच्चे को जो कहता है कि
वह जो ही कमा लेता है एक चटाई बिनकर ;
या उसकी मां को ,
जो फूला नहीं समाती कि उसका बेटा !
बस अंधा ही तो है ;
पर है कितना गुणी- सोचकर !

पर हमारे गुमान से उसे क्या लेना ?
देना उसे क्या है मेरे गुमान को ?
गुमान तो एक ही है; बस उस अणु की तरह,
जिसे और तोड़ा नहीं जा सकता ।
और यदि ऐसा हुआ , तो होगा एक विस्फोट;
यह तब भी होता है जब दो अणु टकराते हैं ,
पर अणु तो स्तित्वशील है सदा ।
तू ! विस्फोट से महज दूरी ही बनाना
वरना , इसमें गुमनाम ना हो जाना!

© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत' १४/०८/२०१३