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अपने दिल की बात क्यों न तुम कहते हो...
सोचते रहते हो दर्द से कराहते हो, अपने दिल की बात क्यों न तुम उन्हें बताते हो।
कब तक रोओगे कब तक दर्द सहोगे, अपने दिल की ख़्वाहिशें उन्हें क्यों न कहते हो।
दर्द दिल सहता है आँखें नाम रहती हैं, अपने दिल की बात उनसे क्यों न कहते हो।
क्या डरते हो उनसे तुम या कोई भेद छुपाये बैठे हो, अगर नहीं तो फिर क्यों न अपनी बात कहते हो।
क्या पता वो भी प्यार करते हो, दर्द दिल का वो भी सहते हो लेकिन अपनी बात कहने से वो भी डरते हों।
तुम जाओ तो उनके पास, कहो तो अपनी बात, क्या पता वो इसी इंतज़ार में बैठे हों।
क्या पता वो सुनकर तुम्हें अपनी बाहों में भरलें सिसक सिसक कर वही बात तुमसे कह दें।
सोचकर देखो कितना खुशी और प्यार मिलेगा, दिल का वो सच्चा जब प्यार तुम्हें मिलेगा।
शुक्रिया कहोगे उर्म भर उस पल का, जिस पल में कहा तुमने और पाया प्यार उनका।
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