...

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बेरुखी
एक हसीं शाम का वादा था
उनसे...
वो शाम कभी आई ही नहीं

रूठने, मनाने के सिलसिले मे
रूठें जो हम उनसे तो...
वो शख्स
मनाने आया ही नहीं

इस कदर, खामोश हुए हम
उनकी बेरुखी से
दर्द का समुन्दर हमारा
खाली हुआ ही नहीं

शिकायते तो बहुत थी
हमें उनसे...
सुन ने वाला वो शख्स
सुनने हमें कभी
आया ही नहीं

स्मृति.