...

82 views

आम की आमगाथा
शोभायमान पत्तियों की हरी चमकीली चादर से प्रकाश राशि टपककर... नव कोमल पत्तों के स्पर्श से झिलमिल स्वर्ण कणों की फुहार में बिखर... मेरे बाल्य चेहरे के प्रौढ़ अलसाई नींद को जगाती... एक नई सुबह!

विस्तृत आकाश रूपी छाता को खुलने में सहारा देता एक भव्य आम्र वृक्ष!
अवर्णनीय सुषमा बिखेरता, थके शरीर को आगोश में सुलाता!
झूमता, झुकता हरियाली से अभिनंदन करता।
वसन्त में नव परिधान पहन, ग्रीष्म में शीतल छाव दान करता।

बालकों का काठखेल, मजदूर दंपति का शिशुगृह, मजबूर का धूप-आश्रय, गपियों का मिलन स्थल, राही का प्रतीक्षालय!

सहस्त्रों बेलगाम तोंद को मात देता, वह एक तना; तनकर खड़ा था!
ग्रामीण महिला के चेहरे सवारते बिंदी के लिए गोंद स्राव करता।
तन पे रंगीन फूलों का बेल लपेटे, हवा में लहराता बहनों में कढ़ाई का नया कल्पना जगाता!

एक चंचल बालक को प्रतिमा की स्थिरता कभी रास न आई।
कभी मुझे डांट-मार पड़ने होता, तो भयभीत वह चरमराकर मुझे उठा अपने मजबूत कंधे पे बिठा लेता! उतरने न देता तबतक; सख्त डांट, पुचकार में न बदल जाता जबतक।

गीली पत्तियों से टपकती ओस की बूंदे, रीलनुमा धारा बहा नन्हें-नन्हें घास सींचती। जिसे कुचलते-उखाड़ फेकते हैं हम!
तूफान को नाग बन फुफकारता, कटिले-घोंसले निर्दोष पक्षी-चूज़े पालता।
हरियाली बाल...