गजल
राहत-ए-जाँ के वास्ते,,मक्का गया,,,मंदिर गया,,
सुकून कैसे मिले उसे जिसका यार वादे से मूकर गया,,
इश्क की तबाहीयों से,,हम कब खौफ-ए-खतर खाते हैं,,
क्या मारेंगी ये अजाबे उसको,,जो बेवफाई से पहले ही मर गया,,
फकिरो की कहानी में,,हमारा ही जिक्र आता है,,बशर,
देख कर जौक-ए-जूनूँ हमारा,,साह-ए-खुदा भी डर गया,,
हदो मे रहकर उलफत के सब्ज-ओ-शजर,,पनपते नही है,,
लांघ कर जिन्दगी की दहलीज,,,आशिक हर हद से गुजर गया,,
मोहब्बत मे कयामत तो बस,,,मौसम-ए हिज्र होता है,,
मुश्त-ए-खाक होकर वो,,इस दर्द से खुद को आजाद कर गया,,
सुकून कैसे मिले उसे जिसका यार वादे से मूकर गया,,
इश्क की तबाहीयों से,,हम कब खौफ-ए-खतर खाते हैं,,
क्या मारेंगी ये अजाबे उसको,,जो बेवफाई से पहले ही मर गया,,
फकिरो की कहानी में,,हमारा ही जिक्र आता है,,बशर,
देख कर जौक-ए-जूनूँ हमारा,,साह-ए-खुदा भी डर गया,,
हदो मे रहकर उलफत के सब्ज-ओ-शजर,,पनपते नही है,,
लांघ कर जिन्दगी की दहलीज,,,आशिक हर हद से गुजर गया,,
मोहब्बत मे कयामत तो बस,,,मौसम-ए हिज्र होता है,,
मुश्त-ए-खाक होकर वो,,इस दर्द से खुद को आजाद कर गया,,