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ताज से सुंदर महबूब मेरी......❣️
आज देखा जब ताज महल को तो मालूम हूवा
ये रंग ए सोहबत फिकी है महबूब से मेरी।
ये जो फैला सफ़ेद रंग है संग ए मरमर का,
चुरा के लाया है आंखो से महबूब के मेरी।
ये छाई है जो बेसुमार हरियाली इर्द गिर्द इसके,
ये परछाई है दुपट्टे की महबूब की मेरी।
ये नए जमाने के आशिक क्या जाने मोहब्बत,
यूं तो हजारों ताज बसते हैं मोहब्बत में मेरी।
ये रंग ए सोहबत फिकी है महबूब से मेरी।
ये जो फैला सफ़ेद रंग है संग ए मरमर का,
चुरा के लाया है आंखो से महबूब के मेरी।
ये छाई है जो बेसुमार हरियाली इर्द गिर्द इसके,
ये परछाई है दुपट्टे की महबूब की मेरी।
ये नए जमाने के आशिक क्या जाने मोहब्बत,
यूं तो हजारों ताज बसते हैं मोहब्बत में मेरी।
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