...

24 views

"शर्वरी"

नयन सींचते स्वप्न अद्भुत
प्रतीति होते हैं आलोकित
सांध्य के मनहरण क्षण से
ठांव पाता है दिवाकर।।

वो विरह की वेदना गा
तुमसे हृदय के भाव कह दे
और नयनों से छुपाकर
अक्षियों का लवण ढ़ह दे।।

तोलकर न बांचता है
न स्वयं को जांचता है
तिमिर के उस प्रकाश पर्व में
जैसे प्रतीक्षित प्रेयसी
तुमसे पक्ष के घाव कह दे।।

लोल लोचन रश्मियां औ,
किंचित चपलता मौन सी
शर्वरी! तेरी प्रकृति का,
मन मोहता है शीत होना।
-अवनि..✍️✨

दिनांक - १०/११/२०२२