...

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मैं चाह लेता तो...
मैं चाह लेता तो आगे बढ़ गया होता
काम से निकलता, सीधे घर गया होता
कर भी क्या सकता था जो शम्मा नसीब न हुई
ये परवाना फिर भी शायद मर गया होता
मसौदा ही कुछ कच्चा थे मेरे इश्क का
वरना ये शैतान(मैं) भी शायद सुधर गया होता
किसने कहा कि नूर बचा है अभी भी जिस्म में
बचा होता तो फिर (मैं) कबका निखर गया होता
वो तो शुक्र है कि मयखाना घर के पास में था
वरना दिल टूटता तो जाने किधर गया होता
रंजिशें अब भी बहुत हैं 'शातिर' से कहने को
काश उससे मिलने के पहले मैं बिखर गया होता
काश वो इत्तेफ़ाक इत्तेफ़ाक से भी न होता
शायद मैं भी काफ़ी आगे बढ़ गया होता
काम से निकलता, सीधे घर गया होता