...

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समाज की बाजूओं में
समाज की बाजूओं में छुपा दर्द है,
आत्मा को तकलीफ, समाज की आड़ में है।

नियमों के बंधन में चूक जाता हैं,
खुद को खो देता है, समाज की राहों में है।

सबकुछ तय करता है, समाज की नज़र,
आत्मसमर्पण करता हूँ, बस यही है खतरा।

लेकिन मैं उठूँगा, इन बंधनों को तोड़,
अपनी आवाज़ को सुनाऊंगा, इस बेहरमी समाज को छोड़।
© Folkland