...

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छोड़ गई फिर तू
कंचन सा दिल
चांदी सी काया
फिर भी मन तेरा
पिघल ना पाया
किसका था साया
जो है खींच रहा तुझे
अपनी ही डोर में
ऐसी भी क्या खता
हमसे हुई...