...

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अल्फ़ाज़
कहना चाहता हूँ बहुत कुछ कह नही पाती हूँ,
बहुत सी बातें दिल में छिपाती हूँ,
माना की बहुत जज़बाती हूँ,
शायद इसी लिए किसी का दिल ना दुख जाए ....
इस बात से घबराती हूँ,

कभी-कभी ओरों से आशाए भी लगाती हूँ,
ना पुरी होने पर खुद को समझाती भी हूँ,
रोती भी हूँ ....खिलखिलाकर मुसकुराती भी हूँ....
कभी गिरती कभी संभलती खुद को चलना सिखाती हूँ ,

कोई हो जो समझे मुझको भी....
बस एक आशा सी लगाती हूँ,
पर यह हो नही सकता इस बात को खुद ही झुठलाती हूँ,
बस एकेले यू ही खुद से बतिआती हूँ,

खुद को अपने दम पे जीना सिखाती हूँ......

© Himani