...

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मुकम्मल इश्क की चाह
कब तक चलता रहेगा सफर दर सफर
खुद को सौप मुझे गुनाहगार हो जा

मैं भी छू लूं गुलाब की पखुड़ियो को
तू भी होश ओ हवास से बाहर हो जा

तेरे जिस्म से ले लूं जरा सी तपीश
मेरी जुस्तजू ए दिल से दो चार हो जा

तेरी बाहों में गुजरेगी मेरी उम्र
तू करने को इश्क तैयार हो जा

हद्द से ज्यादा गुजरना है तुझे पा कर
तू भी छोड़ किनारा दरिया पार हो जा

जरा सी कर ले शैतानी भूल के शर्म
" दीप " जा कर जा उसपे जां निसार हो जा


© शायर मिजाज