...

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ये मेरा ही दिल है न...
ये मेरा ही दिल है ना, तो फिर एकतार धड़कता क्यों नहीं?
बार-बार टूट कर बिखर जाता है, कभी सम्भलता क्यूँ नहीं?

क्यूँ करता है उम्मीद उसके मोहब्बत उससे हमनवाई का,
क्यूँ डरता है ये तन्हाई से, कभी अकेले चलता क्यूँ नहीं?

जबकि जानता है ये, इसे ही हर बार सिसकना पड़ता है,
ठोकरे खाता है हर बार, कभी बच के निकलता क्यूँ नहीं?

क्यूँ इसे रंगीन महफिले, मोहब्बत के किस्से लुभाते है,
इश्क़ के किस्सों को छोड़कर, ये कुछ और पड़ता क्यूँ नहीं?

© Vishakha Tripathi