आख़री उम्मीद
!! *आखिरी उम्मीद* !!
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एक बार एक आदमी रेगिस्तान में कहीं भटक गया। उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी-बहुत चीजें थीं वो जल्द ही ख़त्म हो गयीं और पिछले दो दिनों से वो पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा था। वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ घंटों में अगर उसे कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मौत पक्की है। पर कहीं न कहें उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ चमत्कार होगा और उसे पानी मिल जाएगा… तभी उसे एक झोपड़ी दिखाई दी! उसे अपनी आँखों यकीन नहीं हुआ।
पहले भी वह मृगतृष्णा और भ्रम के कारण धोखा खा चुका था…पर बेचारे के पास यकीन करने के आलावा को चारा भी तो न था! आखिर ये उसकी आखिरी उम्मीद जो थी! वह अपनी बची-खुची ताकत से झोपडी की तरफ रेंगने लगा…जैसे-जैसे करीब पहुँचता उसकी उम्मीद बढती जाती… और इस बार भाग्य भी उसके साथ था, सचमुच वहां एक झोपड़ी थी! पर ये क्या? झोपडी तो वीरान पड़ी थी! मानो सालों से कोई वहां भटका न हो।
फिर भी पानी की उम्मीद में आदमी झोपड़ी के अन्दर घुसा, अन्दर का नजारा देख उसे अपनी आँखों पे यकीन नहीं हुआ…वहां एक हैण्ड पंप लगा था, आदमी एक नई उर्जा से भर गया…पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसता वह तेजी से हैण्ड पंप चलाने लगा। लेकिंग हैण्ड पंप तो कब का सूख चुका था…आदमी निराश हो गया…उसे लगा कि अब उसे मरने से कोई नहीं बचा सकता…वह निढाल हो कर गिर पड़ा! तभी उसे झोपड़ी के छत से बंधी पानी से भरी एक बोतल दिखी! वह किसी तरह उसकी तरफ लपका!
वह उसे खोल कर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल से...
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एक बार एक आदमी रेगिस्तान में कहीं भटक गया। उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी-बहुत चीजें थीं वो जल्द ही ख़त्म हो गयीं और पिछले दो दिनों से वो पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा था। वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ घंटों में अगर उसे कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मौत पक्की है। पर कहीं न कहें उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ चमत्कार होगा और उसे पानी मिल जाएगा… तभी उसे एक झोपड़ी दिखाई दी! उसे अपनी आँखों यकीन नहीं हुआ।
पहले भी वह मृगतृष्णा और भ्रम के कारण धोखा खा चुका था…पर बेचारे के पास यकीन करने के आलावा को चारा भी तो न था! आखिर ये उसकी आखिरी उम्मीद जो थी! वह अपनी बची-खुची ताकत से झोपडी की तरफ रेंगने लगा…जैसे-जैसे करीब पहुँचता उसकी उम्मीद बढती जाती… और इस बार भाग्य भी उसके साथ था, सचमुच वहां एक झोपड़ी थी! पर ये क्या? झोपडी तो वीरान पड़ी थी! मानो सालों से कोई वहां भटका न हो।
फिर भी पानी की उम्मीद में आदमी झोपड़ी के अन्दर घुसा, अन्दर का नजारा देख उसे अपनी आँखों पे यकीन नहीं हुआ…वहां एक हैण्ड पंप लगा था, आदमी एक नई उर्जा से भर गया…पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसता वह तेजी से हैण्ड पंप चलाने लगा। लेकिंग हैण्ड पंप तो कब का सूख चुका था…आदमी निराश हो गया…उसे लगा कि अब उसे मरने से कोई नहीं बचा सकता…वह निढाल हो कर गिर पड़ा! तभी उसे झोपड़ी के छत से बंधी पानी से भरी एक बोतल दिखी! वह किसी तरह उसकी तरफ लपका!
वह उसे खोल कर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल से...