...

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जज्बा....
सिलसिला अब जरा थमने लगा
जोश जिंदगी का भी थकने लगा

कोशिशे करते करते शाम हो चली
एक इंतज़ार भी खत्म सा होने लगा

उम्मीद है कि हार मानती ही नहीं
जाने क्यूँ रात में सूरज दिखने लगा

कौन है जो एक आस जगा जाता है
एक किरण में जहाँ हसीं दिखने लगा

तूफानों में दरख्त भी सब टूट गए
एक नन्हा दिया अकेला फिर भी लड़ता रहा

ज़िद आज भी वही मौजूद है कहीं पर
एक बार फिर वही ज़ज़्बा जगने लगा

तोड़ना इतना भी आसान नहीं किसी को
अब ना टूटने का निश्चय और दृढ़ होने लगा


© * नैna *