हाँ तुम सच्ची,में झूठा
माना में झूठा हूँ,तुम सच्ची हो ।पर याद करो वो पल जब तुम उन रातो मे मेरी बाँहो मे सिर रखकर सोया करती थी,प्रेम के नूतन रंग भरा करती थी।जीने ओर मरने की कसमे खाया करती थी,ओर अपने आप मे ही कुछ प्रेम के गीत गुनगनाया करती, मेरे होंठो को अपने नर्म होठो से सहलाया करती थी...माना तुम सच्ची हो,मे झूठा हूँ।पर याद करो वो पल कब तुम मुझे कसमो के बंधन मे बाँध दिया करती थी ओर जिदंगी भर साथ निभाने का सच्चा वादा क्या करती थी,अपनी प्यारी बातो ओर भोली अदाओ से इस दिल मे प्रेम का वार क्या करती थी...माना मे झूठा हूँ,तुम सच्ची हो।पर याद करो वो पल जब तुम मेरे प्यार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया करती थी मेरे सोशल एंकाउट,मेरी काँल डिटेल को तुम खंगाला करती थी,अपने पन का अहसास कराया करती थी।ओर गर मे होंठो से लगा लेता जाम तो तुम मुझसे नराज हो जाया करती थी उस शाम।हाँ...