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परवाज़
मिट जायेंगे ज़हन से अन्ना के जब मसले सारे
दिलों में फिर कोई गुबार न बाकी रहेगा
आज भले ही कोई मंज़िल नज़र नहीं आती
चलते रहोगे तो कहीं तो कोई ठिकाना मिलेगा
हवा के जैसे बहते जाओ तुम अपनी ही धुन में
कहीं तो तुम्हारी परवाज़ को कोई आसमां मिलेगा
© संवेदना🌼
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