...

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पतित कौन... और पतन क्या है..??
जैसे सभी संज्ञाओं कै
विपरितार्थक शब्द है वैसे ही
स्त्री पुरुष भी दो तरह के होते है
चलो पहले स्त्री को ही लो..
एक वो है जो
अपनी लाज स्वयं आम करती है
और एक वो है
जो इन्हे सिर्फ अपने परमेश्वर की
धरोहर समझकर
सम्भालती है
बडे सपने संजोती है
कोई एक होगा ऐसा जो सिर्फ उसका होगा
जिसको समर्पित होगी वो
और जिस गृहस्थ जीवन के लिए
शिव ने भी हांमी भरी थी
वैसे सुख संसार बसायेगी
जो भिन्नता स्त्री से
पुरुष को अलग करती है
वो जीवन है संसार के लिए
उसके बिना
क्या कल्पना भी होगी
संसार मे वायू की तरह है स्त्री
जल की तरह है प्राणदायिनी
पर सच ही कहा गया है
जो अपना मोल नही समझते
उनकी कौन कद्र करे...??
पसरठ्ठे की बाजार बना लिया है इसे
बहुत सुना मैने
नजर नही नजरिया बदलो
हे संसार की सर्वश्रेष्ठ कलाकृतियों
अगर किसीको दिख रही है सरेआम
वो जो नही चाहता वो देखना
आप बताओ.....
नजरिया बदल लेने से..
क्या दिखना बंद हो जाएगा...??
ये तो आप साफ कह रहे हो
" कि आपका दिखाना गलत नही है...