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नभ की ओर निगाहें
" नभ की ओर निगाहें "(कविता)

कौन मिटा सके वह,
जो लिख चुका विधाता?
दुर्भाग्य,दाने-दाने से वंचित,
बस कहने को हूँ अन्नदाता।।

भूख से रक्षा करूँ मैं सबकी,
मेहनत करता,फसल उगाता।
विडम्बना,अन्नदाता स्वयं भूखा
कैसे नसीब लिखा तूने विधाता।।

रोटी,कपड़ा,मकान ज़रूरतें तीन,
निर्धन हूँ, तीनों से वंचित मैं दीन।
भूमि पर चलाता हल,पसीना बहाता
दुर्भाग्य,फिर भी निर्धन का जीवन बिताता।।

मेरी नभ की ओर करुणा भरी निगाहें,
आँखों मे आँसूं,दर्द के कारण भरूँ आहें।
याचना करूँ,हे सृष्टि के पालनहार....,
मेघ बन बरस जाओ,ले आओ खुशियों की बहार।।

हे कृष्ण !आज नए रूप में देखो सुदामा,
माँगने को विवश किसान पहन भिक्षुक जामा।
हे कृपासिंधु,मेघ बन अब तो...