खोएं हुए ऊस शख्स को ढूंढता हूँ..
बिखरी हुई जिंदगी के टुकड़ों मैं अपने अक्ष को ढूंढता हूँ...
काफी खुश रहां करता था , मैं खोएं हुए ऊस शख्स को ढूंढता हूँ..
काफी शांत सा था , उसे भागना दौडना तो भाता हीं नहीं था...
वो खीले हुए फुल जैसा था , उसे मुरझाना तो आता हीं नहीं था...
जहां होता मस्त होता , कभी आगे कि...
काफी खुश रहां करता था , मैं खोएं हुए ऊस शख्स को ढूंढता हूँ..
काफी शांत सा था , उसे भागना दौडना तो भाता हीं नहीं था...
वो खीले हुए फुल जैसा था , उसे मुरझाना तो आता हीं नहीं था...
जहां होता मस्त होता , कभी आगे कि...