"uljhane zindagi ki"
किन उलझनों में फस गई हु,,
मै जीने को तरस गई हु,,
हाल ऐसा की,किसी से कह भी ना सकूं,,
मलाल ऐसा की सुकून से रह भी न सकूं,,
न जाने कितने घर उजाड़े मेरे इस अज़ाब ने,,
बर्बाद हो गई न जाने कितनी मासूम जाने,,
सुधरने का फिर भी कोई आसार नजर नहीं आता,,
कोशिश करता तो बहुत हु,...
मै जीने को तरस गई हु,,
हाल ऐसा की,किसी से कह भी ना सकूं,,
मलाल ऐसा की सुकून से रह भी न सकूं,,
न जाने कितने घर उजाड़े मेरे इस अज़ाब ने,,
बर्बाद हो गई न जाने कितनी मासूम जाने,,
सुधरने का फिर भी कोई आसार नजर नहीं आता,,
कोशिश करता तो बहुत हु,...