...

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प्रयास
जमाने में चलने का हुनर सीखते है
मिट्टी में खेलते हुए बहुत कुछ सीखते है
हम खड़े रहे देखते जमाने में
खुद को देखा ही नहीं कि कैसे देखते है
लोगों ने काम निकाले है हमसे सभी
हमने किसी को समझा ही नहीं
हमको ऐसे देखते है
सभी के काम आए हम
हर परिस्थितियों में बहुत परवाह
हमारे साथ देने में नहीं किसी बात की
पर्दे से बाहर कि दुनिया जो देखी
हर रिश्ते की कड़वी सच्चाई देखी
देखा हमने रास्तों को कदमों कि परवाह न कि
रण में निहत्थे कूद पड़े हम ,अस्त्रों कि परवाह न की
लेकिन वाकी जो प्राण बचे हैं
उनसे ही हुंकार भरूंगा
युद्ध के परिणाम तक में
निरंतर प्रयासों करूंगा, नहीं हार वरुंगा
सत्यम दुबे


© Satyam Dubey