...

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आखरी क़िस्त
अपनी वफा लम्हों की थी ,
ना सदियों की कसम खाई हमने ।
ना रंजिसे ,ना मलाल रहा,
ना इक दूजे को दी सफाई हमने ।।

नेटवर्क से बाहर निकल के भी,
कुछ सिग्नल रह गया शायद ।
तेरा फोन न उठाने खातिर ,
हर रोज बैलेंस भराई हमने ।
© mukesh_syahi