...

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बद्दुआ नहीं निकलती है
खुशी की बात हो जब
मन नाच उठता है तब
ग़म की मायूसी हो तो
दिल क्यों कचौटता है?

कहना जरूरी नहीं तब
आंखें ब्यान कर देती हैं
जज्बातों के दायरे में से
अरमान मचलते हैं जब!

दिल जलता है अक्सर तब
हसरतें पूरी नहीं होती जब
अधूरी ख्वाहिशें सताती हैं
यादें भुलाई नहीं जाती हैं !

तकदीर वालों के दिन रंगीन हैं
हम उनकी यादों में ग़मगीन हैं
दिल ने था जिसे अपना समझा
उसीने चाहत को सपना समझा

सपनों को तोड़कर वो चल दिए
जिनसे मौहब्बत की आरजू थी
जब से वह हमसे बिछड़ गए हैं
जिंदगी में कितने पिछड़ गए हैं

धोखा दिया था जिसने हमें उनसे है गिला
अरमानों को चकनाचूर कर के क्या मिला
इक मासूम दिल से ऐसा खिलवाड़ किया
एक हाथ ही तो मांगा था वो भी नहीं दिया

टूट गया है बेशक फिर भी
कोई आह नहीं निकलती है
टूटे इस जख्मी दिल से कभी
कोई बद्दुआ नहीं निकलती है

© PJ Singh